Mahendra Bhatt

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चलों, फिर प्यार कर लें

हिन्दी दिवस प्रतियोगिता --


चलो, फिर प्यार कर लें।
एक दिया और धर लें।।

गहन अँधेरा है यहाँ,बौने उजले आवरण।
चरण पूर्ण होंगे, तब,बदले जब निज आचरण ।।
संबल लेकर नेह का,संसार -सागर तर लें।चलो, .....!

चिरपरिचित मुखौटे हैं,नहीं जिनका हिसाब है ।
फल की बात कौन करे,जब मूल ही खराब है ।।
अपना मन खाली हुआ, प्रेम सुधा रस भर लें।चलो, ......!

पास आते ही सबकुछ,लूटता अपना -मेरा ।
अगले पल मिटा जाता,कोई न होता तेरा।।
मनुजता,गर जीवित है,तो,परहित पीर हर लें।चलो..!
  
        **महेन्द्र भट्ट 
   (कवि -लेखक- व्यंग्यकार)
       ग्वालियर

# हिंदी दिवस प्रतियोगिता 

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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

03-Sep-2022 01:57 PM

बहुत खूबसूरत

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बहुत अच्छी रचना 👌

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Achha likha hai aapne 🌺🙏

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